प्रस्तावना
1.वर्ष 1960
में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
युद्ध काल के बीच की अवधि के दौरान,भारत
में आवश्यक वस्तुओं का सार्वजनिक वितरण किया जाता था। तथापि, वर्ष 1960 में भोजन की अत्यधिक कमी के कारण अभावग्रस्त शहरी क्षेत्रों में खाद्यान्नों के वितरण पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली
की शुरूआत की गई थी। पीडीएस ने खाद्यान्नों के मूल्यों में वृद्धि को नियंत्रित करने और शहरी उपभोक्ताओं तक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। चूंकि हरित क्रांति के बाद राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई थी, इसलिए,वर्ष
1970 और वर्ष 1980 में जनजातीय इलाकों और अधिक गरीबी वाले क्षेत्रों तक पीडीएस की पहुंच को बढ़ाया गया था।
2. पुनर्गठित (रीवैम्प्ड) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आरपीडीएस)
पुनर्गठित (रीवैम्प्ड) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आरपीडीएस) की शुरुआत जून,1992 में की गई ताकि दूर-दराज,
पहाड़ी,दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्र, जहां गरीबों का एक बड़ा वर्ग रहता है, में पीडीएस को सुद्ढ़ और सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ
इसकी पहुंच में सुधार किया जा सके। इसमें 1775ब्लॉकों को कवर किया गया था,जहां सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम,एकीकृत जनजातीय
विकास परियोजना, मरूस्थल विकास कार्यक्रम और विशेष लक्ष्य हेतु राज्य सरकारों के परामर्श से पहचान किए गए कुछ पहाड़ी क्षेत्र जैसे क्षेत्र विशिष्ट कार्यक्रम कार्यान्वित किए गए थे। पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(आरपीडीएस) में वितरण हेतु खाद्यान्न केंद्रीय निर्गम मूल्य से 50
पैसे कम मूल्य पर जारी किए गए थे। निर्गम की मात्रा 20
किलोग्राम प्रति कार्ड तक थी। पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जिन्सों की प्रभावी पहुंच,राज्य सरकारों द्वारा पहचान किए गए क्षेत्रों में उचित दर दुकानों द्वार तक उनकी सुपुर्दगी,छोड़
दिए गए परिवारों को अतिरिक्त राशन कार्ड,
अतिरिक्त उचित दर दुकान भंडारण क्षमता इत्यादि जैसी इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी आवश्यकताओं और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दुकानों के जरिए वितरण हेतु चाय,नमक,दाल,साबुन
आदि जैसे अतिरिक्त वस्तुओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण शामिल थे।
3. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस)
निर्धनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत सरकार ने जून, 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) की शुरुआत की थी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(पीडीएस) के अंतर्गत, राज्यों को एफपीएस स्तर पर एक पारदर्शी और उत्तरदायी तरीके से निर्धनों को चिह्नित करने और खाद्यान्नों का वितरण करने के लिए एक विश्वसनीय व्यवस्था तैयार और लागू करने की आवश्यकता थी। प्रारंभ
में, इस योजना का उद्देश्य ऐसे लगभग 6 करोड़ गरीब परिवारों को लाभान्वित करना था जिनके लिए खाद्यान्नों की लगभग 72 लाख टन मात्रा वार्षिक रूप से निर्धारित की गई थी। इस योजना के अंतर्गत राज्यों
द्वारा निर्धनों को चिह्नित किया गया था जो वर्ष 1993-94 के लिए योजना आयोग के राज्य–वार गरीब अनुमानों के अनुसार स्वर्गीय प्रोफेसर लकड़वाला की अध्यक्षता में "अनुपात और गरीबों की संख्या के अनुमान पर विशेषज्ञ समूह” की कार्य-पद्धति के आधार पर किया गया था। राज्यों/संघ
राज्य क्षेत्रों को खाद्यान्नों का आबंटन पूर्व में औसत उपभोग के आधार पर किया गया था अर्थात् टीपीडीएस की शुरुआत के समय पिछले दस वर्षों के दौरान पीडीएस के अंतर्गत खाद्यान्नों का औसत वार्षिक उठान।
गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की आवश्यकता के अलावा भी राज्यों को खाद्यान्नों की मात्रा ‘अस्थायी आबंटन’ के रूप में प्रदान की गई थी जिसके लिए 103 लाख टन खाद्यान्नों की मात्रा को वार्षिक रूप
से निर्दिष्ट किया गया था। टीपीडीएस आबंटन के अतिरिक्त, राज्यों को अतिरिक्त आबंटन भी दिया गया था। इस ट्रांज़िटरी आबंटन का उद्देश्यगरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) की आबादी के लिए सब्सिडीयुक्त खाद्यान्नों के लाभ को जारी
रखने के लिए किया गया था क्योंकि पीडीएस के तहत मौजूदा लाभों को उनसे अचानक वापस लेने को वांछनीय नहीं माना गया था। यहट्रांज़िटरीआबंटन सब्सिडीयुक्त मूल्यों पर जारी किया गया था परंतु खाद्यान्नों के बीपीएल कोटे के
मूल्य से अधिक था।
बीपीएल परिवारों को खाद्यान्नों के आबंटन में वृद्धि करने और खाद्य राजसहायता को बेहतर रूप से लक्षित करने के संबंध में सर्वसम्मति को ध्यान में रखते हुए,
भारत सरकार ने आर्थिक लागत के 50% की दर से बीपीएल परिवारों को खाद्यान्नों के आबंटन में 10कि.ग्रा. से20कि.ग्रा. तक की वृद्धि
की है और दिनांक1.4.2000 से एपीएल परिवारों को आर्थिक लागत पर आबंटन किया। एपीएल परिवारों के आबंटन को उसी स्तर पर रखा गया जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के
प्रारंभ के समय था परंतु एपीएल के लिए केन्द्रीय निर्गम मूल्यों (सीआईपी) को उस तारीख से आर्थिक लागत के100%तक निर्धारित किया गया था ताकि समस्त उपभोक्ता राजसहायता को बीपीएल जनसंख्या
के लाभ के लिए उपयोग किया जा सके। तथापि,खरीद लागत मे महत्वपूर्ण वृद्धि होने के बावजूद भी बीपीएल और एएवाई के लिए क्रमशः जुलाई और दिसंबर,2000 और एपीएल के लिए जुलाई,2002में
निर्धारित केन्द्रीय निर्गम मूल्य में तब से कोई वृद्धि नहीं की गई है।
वर्ष 1995 के पूर्व के जनसंख्या अनुमानों के स्थान पर दिनांक 1.3.2000 की स्थिति के अनुसार महापंजीयक के जनसंख्या अनुमानों को आधार बनाते हुए दिनांक 1.12.2000 से बीपीएल परिवारों की संख्या में वृद्धि
हुई थी। इस वृद्धि के साथ ही, जून 1997 में टीपीडीएस की शुरुआत के समय मूल रूप से अनुमानित 596.23 लाख परिवारों की तुलना में बीपीएल परिवारों की कुल संख्या 652.03 लाख हो गई। टीपीडीएस के अंतर्गत, थोक व्यापारियों/खुदरा व्यापारियों, परिवहन शुल्क, लेवी स्थानीय कर आदि
के मार्जिन को ध्यान में रखते हुए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा अंतिम खुदरा कीमत निर्धारित की गई थी। पूर्व में राज्यों से अनुरोध किया गया था कि बीपीएल परिवारों के लिए जारी किए गए खाद्यान्नों में केन्द्रीय निर्गम मूल्य के अलावा 50 पैसे प्रति कि.ग्रा. से
अधिक का अंतर न हो। तथापि, वर्ष 2001 से, टीपीडीएस के अंतर्गत खाद्यान्नों के वितरण के लिए केन्द्रीय निर्गम मूल्य के अलावा 50 पैसे प्रति कि.ग्रा. के प्रतिबंध को हटाकर खुदरा
निर्गम मूल्यों को निर्धारित करने के मामले में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को नम्यता प्रदान की है।
4. अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई)
बीपीएल जनसंख्या के निर्धनतम वर्गों में भुखमरी कम करने के प्रयोजन से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को तैयार करने की दिशा में अंत्योदय अन्न योजना एक कदम था। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने इस तथ्य की ओर ध्यान
आकर्षित किया कि देश के कुल आबादी का लगभग 5% को दो वक्त के भोजन के बिना ही गुजारा करना पड़ता है। जनसंख्या के इस वर्ग को "भुखमरी से पीड़ित” कहा जा सकता है। जनसंख्या के इस वर्ग पर अधिक ध्यान केंद्रित और लक्षित करने के लिए,एक
करोड़ निर्धनतम परिवारों के लिए दिसम्बर, 2000 में "अंत्योदय अन्न योजना” (एएवाई) को प्रारंभ किया गया था।
अंत्योदय अन्न योजना के तहत, राज्यों में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत कवर किए गए बीपीएल परिवारों की संख्या
में से एक करोड़ निर्धनतम परिवारों की पहचान करना तथा उन्हें 2/- रुपए प्रति कि.ग्रा. पर गेहूं और 3/- रुपए रुपए प्रति कि.ग्रा. चावल के अत्यधिक सब्सिडीयुक्त दर खाद्यान्न प्रदान करना शामिल था। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए परिवहन लागत के साथ-साथ डीलरों
और खुदरा विक्रताओं को मार्जिन सहित वितरण लागत का वहन करना भी आवश्यक था। अत: इस योजना के तहत समस्त खाद्य राजसहायता को उपभोक्ताओं को प्रदान किया गया था। प्रारंभ में,
खाद्यान्न जारी करने से संबंधित मानदंड 25 कि.ग्रा. प्रति परिवार प्रति माह थे जिन्हें दिनांक 1 अप्रैल, 2002 से बढ़ाकर 35 कि.ग्रा. प्रति परिवार प्रति माह किया गया था। अब,अंत्योदय
अन्न योजना (एएवाई) में 2.50 करोड़ निर्धनतम परिवारों को निम्नानुसार कवर किया जा रहा है:
वर्ष 2003-04 में अंत्योदय अन्न योजना का विस्तार किया गया था जिसके अंतर्गत ऐसे 50 लाख अतिरिक्त बीपीएल परिवारों को जोड़ा गया था जिनकी मुखिया विधवाएं अथवा असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति अथवा दिव्यांगजन
अथवा 60
वर्ष या उससे अधिक की आयु के व्यक्ति जिनकी आजीविका का कोई सुनिश्चित साधन नहीं है या जिन्हें कोई पारिवारिक अथवा सामाजिक समर्थन प्राप्त नहीं है। इस संबंध में,दिनांक 03 जून, 2003 को आदेश जारी किया गया था। इस वृद्धि
के साथ, अंत्योदय अन्न योजना के तहत 1.5 करोड़ (अर्थात् बीपीएल के 23%) परिवारों को कवर किया गया था।
केन्द्रीय बजट 2004-05 की घोषणा के बाद, अंत्योदय अन्न योजना को विस्तार दिया गया था जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ भुखमरी के संकट से जूझने वाले सभी परिवारों को शामिल करते हुए 50 लाख अन्य बीपीएल
परिवारों को जोड़ा गया था। इस संबंध में दिनांक 03 अगस्त, 2004 को आदेश जारी किया गया था। इन परिवारों की पहचान करने के लिए, दिशानिर्देशों के अनुसार निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए थे: (क): ग्रामीण और शहरी,दोनों
क्षेत्रों में भूमिहीन कृषि श्रमिक, सीमांत किसान, ग्रामीण दस्तकार/शिल्पी जैसे कुम्हार,चर्मकार,बुनकर,लोहार,बढ़ई,
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले और अनौपचारिक क्षेत्र में दिहाड़ी आधार पर जीविका अर्जित करने वाले व्यक्ति जैसेकि बोझा ढोने वाले,कुली,रिक्शाचालक,
हाथठेला चालक,फल और फूल विक्रेता, सपेरे, कूड़ा बीनने वाले,मोची और इसी प्रकार
की अन्य श्रेणियों के परिवार (ख): ऐसे परिवार जिनकी मुखिया विधवा अथवा असाध्य रोग ग्रस्त व्यक्ति/दिव्यांग व्यक्ति/ 60वर्ष या उससे अधिक की आयु के व्यक्ति,जिनकी
आजीविका का कोई सुनिश्चित साधन नहीं है अथवा जिन्हें सामाजिक सहायता प्राप्त नहीं है (ग): विधवा महिलाएं अथवा असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति अथवा दिव्यांगजन अथवा60वर्ष या उससे अधिक की आयु के व्यक्ति अथवा अकेली महिला
या अकेला पुरुष जो अकेले रहते हैं अथवा सामाजिक समर्थन प्राप्त नहीं है या जिनकी आजीविका का कोई सुनिश्चित साधन नहीं है। (घ): सभी आदिम आदिवासी परिवार।
केन्द्रीय बजट 2005-06 की घोषणा के बाद, अंत्योदय अन्न योजना को विस्तार दिया गया था जिसमें 50 लाख अतिरिक्त परिवारों को शामिल किया गया था,जिसके
फलस्वरूप इस योजना में 2.5 करोड़ परिवारों (अर्थात बीपीएल के 38%) तक कवर किए गए थे। इस संबंध में दिनांक 12 मई, 2005 को आदेश जारी किया गया था।
5. पीडीएस-मूल्यांकन, मॉनीटरिंग और अनुसंधान परियोजना
तत्कालीन योजना घटक, पीडीएस-मूल्यांकन,मॉनीटरिंग
और अनुसंधान, एक ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य समय-समय पर स्वतंत्र प्रतिष्ठित एजेंसियों (मॉनीटरिंग
संस्थानों,
एमआई) के माध्यम से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस)/राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) की कार्य-प्रणाली का मूल्यांकन करना है। एनएफएसए कार्यान्वयन की मौजूदामॉनीटरिंग
को सुदृढ़ बनाने और नियमित आधार पर व्यापक अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करने के लिए खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने चरण-1 (2018-20) और चरण-2 (2020-23) में विचारार्थ विषयों के अनुसार,विभिन्न
राज्यों/संघ राज्यों क्षेत्रों में समवर्ती मूल्यांकन कार्य करने के लिए कईमॉनीटरिंग संस्थानों (एमआई) को नियोजित किया
है।
चरण-1 में, तत्कालीन योजना घटक के तहत, खाद्य और सार्वजनिक वितरण
विभाग ने तिमाही प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 2 वर्षों (2018-20) के लिएमॉनीटरिंगसंस्थानों
(एमआई) को नियोजित किया था। आवश्यक कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्यों/संघ राज्यों क्षेत्रों के साथ रिपोर्टों को साझा की गई थी।
चरण-2 परियोजना, जो 3 वर्ष के लिए है,के अंतर्गत 17 राज्यों/संघ राज्य
क्षेत्रों में अर्धवार्षिक आधार पर और शेष 19 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में वार्षिक आधार पर समवर्ती मूल्यांकन किया जा रहा है। इस बार अध्ययन/मूल्यांकन संबंधी कार्य विषय-वस्तु पर आधारित है और अन्य बातों के साथ-साथ त्रुटियों का समावेशन और बहिष्करण, एक राष्ट्र
और एक राशन कार्ड/पोर्टेबिलिटी, आपूर्ति श्रृंखला और पीडीएस सुधार, प्रभावी शिकायत निवारण, सतर्कता समिति और सामाजिक लेखापरीक्षा,
आसान पहुंच और लीकेज/डाइवर्जन तथा अन्य विषयों के संबंध में जागरूकता और जानकारी जैसे विभिन्न विषयों को भी कवर किया गया है। प्रथम और द्वितीय वर्षों के लिए निष्कर्षों/सिफारिशों पर आगे की आवश्यक कार्रवाई करने हेतु आबंटित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के साथमॉनीटरिंग
संस्थानों (एमआई) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों को साझा किया गया है।
चरण-1 और चरण-2 से संबंधित रिपोटों को नीचे दिए गए लिंक पर देखा जा सकता है: