सामान्य नीति
गन्ना मूल्य नीति
दिनांक
22.10.2009 को गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 में संशोधन करने के साथ,
गन्ने के सांविधिक न्यूनतम मूल्य की अवधारणा के स्थान पर 2009-10 और बाद के चीनी मौसमों के लिए गन्ने के ‘उचित और लाभकारी मूल्य’ की अवधारणा लाई गई थी। केन्द्रीय सरकार द्वारा कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर
और राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श के पश्चात तथा चीनी उद्योग की एसोसिएशनों से फीडबैक लेकर गन्ना मूल्य निर्धारित किया जाता है और उसकी घोषणा की जाती है। गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के संशोधित उपबंधों में निम्नलिखित कारकों को ध्यान में
रखते हुए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य निर्धारित करने का प्रावधान है:-
क.
गन्ने की उत्पादन लागत;
ख.
वैकल्पिक फसलों से उत्पादकों को लाभ तथा कृषि जिंसों के मूल्यों की सामान्य प्रवृत्ति;
ग.
उपभोक्ताओं को उचित दर पर चीनी की उपलब्धता;
घ.
उत्पादनकर्ताओं द्वारा गन्ने से उत्पादित चीनी जिस मूल्य पर बेची जाती है;
ङ.
गन्ने से चीनी की रिकवरी;
च.
सह-उत्पादों अर्थात शीरा,
खोई तथा प्रेस मड के विक्रय से प्राप्त राशि या उनके अभ्यारोपित मूल्य (29.12.2008 की अधिसूचना द्वारा अंत:स्थापित);
छ.
जोखिम और लाभ के कारण गन्ना उत्पादकों के लिए उचित मार्जिन (22.10.2009 की अधिसूचना द्वारा अंत:स्थापित)।
उचित और लाभकारी मूल्य की प्रणाली के अधीन,
किसानों को मौसम के अंत की अथवा चीनी मिलों या सरकार द्वारा लाभों की किसी घोषणा की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। नई प्रणाली में इस तथ्य का ख्याल किए बिना कि भले ही चीनी मिलों को लाभ होता है या नहीं किसानों को लाभ और जोखिम के प्रति मार्जिन
भी आश्वस्त किए गए हैं और ये किसी चीनी मिल विशेष के कार्य निष्पादन पर निर्भर नहीं है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि अपेक्षाकृत अधिक चीनी रिकवरियों का पर्याप्त रूप से प्रतिफल दिया जाता है और चीनी मिलों के बीच विभिन्नताओं पर विचार करते हुए,
गन्ने से चीनी की अधिक रिकवरी के लिए किसानों को देय प्रीमियम के साथ उचित और लाभकारी मूल्य चीनी की मूल रिकवरी दर से सम्बद्ध हैं।
तदनुसार, चीनी मौसम
2022-23 के लिए उचित और लाभकारी मूल्य
305 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, जो 10.25प्रतिशत की मूल रिकवरी से संबद्ध है, जो 10.25 प्रतिशत से अधिक रिकवरी पर प्रत्येक 0.1 प्रतिशत
की वृद्धि के लिए 3.05 रुपये प्रति क्विंटल के प्रीमियम के अध्यधीन है और 9.5% तक रिकवरी दर में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की गिरावट के लिए उचित और लाभकारी मूल्य में उसी दर पर कमी के अध्यधीन है। सरकार ने किसानों के हित के संरक्षण की दृष्टि
से यह निर्णय लिया है कि उस अवस्था में कोई कटौती नहीं की जाएगी, जहां रिकवरी 9.5 प्रतिशत से कम है; ऐसे किसानों को वर्तमान मौसम में गन्ने के लिए
282.125 रूपये प्रति क्विंटल का मूल्य मिलेगा।
चीनी कारखानों द्वारा
2009-10 से 2022-23
तक प्रत्येक चीनी मौसम के लिए देय उचित और लाभकारी मूल्य निम्नलिखित सारणी में दिए गए हैं:-
चीनी मौसम
|
उचित और लाभकारी मूल्य
(रूपये प्रति क्विंटल)
|
मूल रिकवरी स्तर
|
2009-10
|
129.84
|
9.5%
|
2010-11
|
139.12
|
9.5%
|
2011-12
|
145.00
|
9.5%
|
2012-13
|
170.00
|
9.5%
|
2013-14
|
210.00
|
9.5%
|
2014-15
|
220.00
|
9.5%
|
2015-16
|
230.00
|
9.5%
|
2016-17
|
230.00
|
9.5%
|
2017-18
|
255.00
|
9.5%
|
2018-19
|
275.00
|
10%
|
2019-20
|
275.00
|
10%
|
2020-21
|
285.00
|
10%
|
2021-22
|
290.00
|
10%
|
2022-23
|
305.00
|
10.25%
|
चीनी मूल्य नीति
चीनी के मूल्य बाजार के रुझानों के अधीन होते हैं और चीनी की मांग तथा आपूर्ति पर निर्भर हैं। तथापि,किसानों के हितों के संरक्षण के उद्देश्य
से चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य (एमएसपी) की अवधारणा दिनांक 07.06.2018 से लागू की गई है,ताकि यह उद्योग कम से कम, चीनी की न्यूनतम उत्पादन लागत निकाल सके, ताकि वह किसानों के गन्ना मूल्य बकाया
का भुगतान करने में समर्थ हो सके।
सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3 की उप धारा (2) के खंड (ग) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए चीनी मूल्य (नियंत्रण)
आदेश,2018 अधिसूचित किया है। उक्त आदेश के प्रावधानों के अंतर्गत सरकार ने घरेलू खपत के लिए चीनी मिलों द्वारा कारखाना द्वार पर बिक्री हेतु सफेद/रिफाईंड चीनी का न्यूनतम विक्रय मूल्य दिनांक 07.06.2018 से 29/- रुपए प्रति किलोग्राम निर्धारित
किया गया जिसे दिनांक 14.02.2019 से संशोधित करके इसे 29/- रुपए प्रति किलोग्राम से 31/- रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया है। चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य (एमएसपी) का निर्धारण गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तथा सर्वाधिक कार्य कुशल मिलों की न्यूनतम परिवर्तन
लागत के घटकों को ध्यान में रखकर किया गया है।
एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम (ईबीपी कार्यक्रम)
एथेनॉलमिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम वर्ष
2003 में कृषि अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देने,
आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने,
कच्चे तेल के आयात बिल के कारण विदेशी मुद्रा को बचाने,
वायु प्रदूषण को कम करने और चीनी क्षेत्र का समर्थन करने तथा गन्ना किसानों के हित के दृष्टिकोण से शुरू किया गया था।
एथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के विभिन्न लाभों को ध्यान में रखते हुए,
सरकार ने वर्ष 2025 तक 20%
सम्मिश्रण उपलब्ध करने के लक्ष्य को अग्रिम किया है, जिसे पहले वर्ष
2030में हासिल किया जाना था। तथापि,
वर्तमान में देश में इथेनोल उत्पादन क्षमता वर्ष
2025 तक
20% सम्मिश्रण उपलब्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। तदनुसार,
वर्ष 2025
तक 20% के सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए, सरकार वर्ष
2018 से (वर्ष 2021 में अनाज से एथेनॉल के उत्पादन को भी इन स्कीमों के तहत शामिल किया गया था) विभिन्न एथेनॉल ब्याज छूट स्कीमों का कार्यान्वयन कर रही है
ताकि चीनी मिलों और डिस्टीलरियों को नई डिस्टीलरियां (शीरा आधारित, अनाज आधारित और डुअल-फीड आधारित) की स्थापना करने या मौजूदा
डिस्टीलरियों (शीरा आधारित, अनाज आधारित और डुअल-फीड आधारित) के विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। सभी एथेनॉल ब्याज छूट स्कीमों के तहत,
सरकार परियोजना प्रस्तावकों द्वारा बैंकों से लिए गए ऋण को एक साल के ऋण स्थगन सहित पांच साल के लिए ब्याज छूट जो 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से बैंकों द्वारा लिए जाने वाले ब्याज या लिए गए कुल ब्याज का 50 प्रतिशत जो भी कम हो,
वहन करेगी जो नई डिस्टिलरियों की स्थापना या मौजूदा डिस्टिलरियों के विस्तार अथवा शीरा आधारित डिस्टिलरियों को दोहरे फीडस्टॉक डिस्टिलरियों में परिवर्तित करने के लिए है। आशा है कि आने वाले वर्षों में इससे करीब
41,000करोड़ रुपये का निवेश होगा।
एथेनॉल मौसम
2022-23 (दिसंबर-अक्तूबर) के लिए एथेनॉल के लाभकारी मूल्य का निर्धारण
चीनी क्षेत्र का समर्थन करने और गन्ना किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने बी-हैवी शीरे, गन्ने का रस,
चीनी सिरप और चीनी से एथेनॉल के उत्पादन की भी अनुमति दी है। सरकार खाद्यान्नों जैसे छतिग्रस्त खाद्यान्न (डीएफजी),
मक्का और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास उपलब्ध अधिशेष चावल से इथेनॉल उत्पादित करने के लिए डिस्टिलिरियों को प्रोत्साहित भी कर रही है।
सरकार सी-हैवी और बी-हैवी शीरा, और गन्ने के रस/चीनी/चीनी सिरप से प्राप्त
एथेनॉल का लाभकारी एक्स-मिल मूल्य निर्धारित करती रही है। खाद्यान्नों जैसे छतिग्रस्त खाद्यान्न (डीएफजी),
मक्का और एफसीआई चावल से उत्पादित एथेनॉल का मू्ल्य तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) द्वारा निर्धारित किया जाता है। वर्तमान
एथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई)
2022-23 (दिसंबर से अक्तूबर) के लिए विभिन्न फीड स्टॉकों से
एथेनॉल का मूल्य निम्नानुसार हैः-
(रुपये प्रति लीटर में)
फीड स्टॉक
|
ईएसवाई
2022-23
(दिसंबर से अक्तूबर)
|
गन्ने के रस/चीनी/चीनी सीरप
|
65.61
|
बी-हैवी शीरा
|
60.73
|
सी हैवी-शीरा
|
49.41
|
क्षतिग्रस्त खाद्यान्न (डीएफजी)
|
55.54
|
एफसीआई से प्राप्त चावल
|
58.50
|
मक्का
|
56.35
|
इसके अतिरिक्त,वास्तविक और परिवहन के अनुसार जीएसटी भी देय होगा।
एथेनॉल ब्लेंडिंग पेट्रोल कार्यक्रम के अंतर्गत इथेनोल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए
एथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ौत्तरी हेतु उठाए गए कदम:
i. एथेनॉल उत्पादन क्षमता में
बढ़ौत्तरी और संवर्धन करने के लिए चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु
स्कीम
एथेनॉल के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने तथा इसके द्वारा एथेनॉल के उत्पादन हेतु चीनी के विपथन की अनुमति भी प्रदान करने के लिए नई डिस्टिलरियों की स्थापना/मौजूदा डिस्टिलरियों के विस्तार तथा इंसीनरेशन
बॉयलरों की स्थापना अथवा जीरो लिक्विड डिस्चार्ज के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा यथा अनुमोदित किसी अन्य पद्धति की स्थापना के लिए बैंकों के माध्यम से 6139 करोड़ रुपए का सहज ऋण प्रदान करने हेतु सैद्धांतिक अनुमोदन प्रदान किया गया है,
जिसके लिए सरकार 1332 करोड़ रुपए की ब्याज छूट वहन करेगी।
ii. एथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ौत्तरी
और संवर्धन करने के लिए चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु स्कीम
सरकार ने
एथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ौत्तरी और संवर्धन करने के लिए
चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिनांक 08.03.2019 को एक नई स्कीम अधिसूचित की है। इस स्कीम के अंतर्गत सरकार
एथेनॉल उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के लिए बैंकों द्वारा चीनी मिलों को 12900 करोड़ रुपए की सांकेतिक ऋण राशि प्रदान करने के लिए ब्याज छूट के लिए 2790 करोड़ रुपए वहन करेगी।
iii.
शीरा आधारित स्टैंड-एलोन डिस्टिलरियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु स्कीम
सरकार ने शीरा आधारित स्टैंड-एलोन डिस्टिलरियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिनांक 08.03.2019 को एक स्कीम अधिसूचित की है। इस स्कीम के अंतर्गत
सरकार शीरा आधारित स्टैंड-एलोन डिस्टिलरियों को अपनी एथेनॉलउत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के लिए बैंकों द्वारा उन्हें 2600 करोड़ रुपए की सांकेतिक ऋण राशि प्रदान करने
के लिए ब्याज छूट के लिए 565 करोड़ रुपए वहन करेगी।
iv. परियोजना प्रस्तावकों को
एथेनॉल डिस्टिलेशन क्षमता में विस्तार करने हेतु अथवा उन्हें अनाज (चावल, गेहूं, जौ, मक्का और सोरघम), गन्ना, चुकंदर आदि से प्रथम पीढ़ी (1जी)
एथेनॉल के उत्पादन करने हेतु डिस्टिलरियों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु स्कीम
सरकार ने
एथेनॉल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पूर्ववर्ती स्कीम को संशोधित किया और दिनांक 14.01.2021 की अधिसूचना के माध्यम से परियोजना प्रस्तावकों को उनकी एथेनॉल
डिस्टिलेशन क्षमता में विस्तार करने हेतु अथवा उन्हें अनाज (चावल, गेहूं, जौ, मक्का अथवा सोरघम), गन्ना, चुकंदर आदि से प्रथम पीढ़ी (1जी)
एथेनॉल के उत्पादन करने हेतु उन्हें डिस्टिलरियों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने संबंधी स्कीम अधिसूचित की है।
इस स्कीम के तहत,
सरकार परियोजना प्रस्तावकों द्वारा बैंकों से लिए गए ऋण के लिए एक साल के ऋण स्थगन सहित पांच साल के लिए ब्याज छूट जो 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से बैंकों द्वारा लिए जाने वाले ब्याज या लिए गए कुल ब्याज का 50 प्रतिशत जो भी कम हो,
वहन करेगी जो नई डिस्टिलरियों की स्थापना या मौजूदा डिस्टिलरियों के विस्तार अथवा शीरा आधारित डिस्टिलरियों को दोहरे फीडस्टॉक डिस्टिलरियों में परिवर्तित करने के लिए है। इससे करीब
41,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा। क्षमता विस्तार/नई डिस्टिलरियों में आगामी निवेश के कारण,ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के विभिन्न नए अवसर पैदा होंगे।
सरकार ने उन परियोजना प्रस्तावकों,जिन्होंने इथेनॉल परियोजनाओं के लिए भूमि प्राप्त कर ली है एवं "फीड स्टॉकों जैसे अनाज (चावल, गेहूं,
जौ, मक्का और ज्वार), गन्ना,चुकन्दर आदि से प्रथम पीढ़ी (1
जी) एथेनॉल के उत्पादन के लिए परियोजना प्रस्तावकों को उनकी मौजूदा
एथेनॉल आसवन क्षमता को बढ़ाने या नई डिस्टिलरी स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता देने के लिए स्कीम” के अंतर्गत पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त कर ली है,
से नए आवेदन पत्र प्राप्त करने के लिए एक वर्ष की अवधि हेतु दिनांक 22.04.2022
से एक विंडो की शुरुआत की है।
निर्यात-आयात नीति
(i)
चीनी का निर्यात
चीनी एक आवश्यक जिंस है। मिलों से इसकी बिक्री,डिलीवरी और वितरण सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के
तहत विनियमित किया जाता था। दिनांक 15.01.1997 तक चीनी का निर्यात चीनी निर्यात संवर्द्धन अधिनियम, 1958 के उपबंधों के तहत अधिसूचित निर्यात एजेंसियों अर्थात भारतीय चीनी एवं सामान्य उद्योग निर्यात-आयात निगम लि. (आईएसजीआईईआईसी) तथा भारतीय
राज्य व्यापार निगम लि. द्वारा किया जा रहा था।
एक अध्यादेश के माध्यम से, चीनी निर्यात संवर्द्धन अधिनियम,1958 को 15.01.1997 से निरस्त कर दिया गया था और इस प्रकार
चीनी के निर्यात को विकेंद्रित कर दिया गया था। विकेंद्रित व्यवस्था के तहत चीनी का निर्यात वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि तथा प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के माध्यम से किया जा रहा था। उसके बाद विभिन्न चीनी मिलों/व्यापारी
निर्यातकों द्वारा शर्करा निदेशालय के निर्यात रिलीज आदेश प्राप्त करने के पश्चात चीनी का निर्यात किया गया।
चीनी मौसम 2006-07 और 2007-08 के अधिशेष चरण के दौरान, रिलीज आदेशों के बिना चीनी का निर्यात करने की अनुमति दी गयी थी। तत्पश्चात 01.01.2009
से रिलीज आदेश प्राप्त करने की अनिवार्यता पुन: लागू कर दी गयी थी क्योंकि देश में चीनी का उत्पादन कम हो गया था। तथापि, चीनी मौसम 2010-11 के दौरान अधिशेष उत्पादन के कारण, सरकार ने खुले सामान्य लाइसेंस के तहत रिलीज
आदेश की मात्रा के आधार पर चीनी के निर्यात की अनुमति दे दी थी।
अधिशेष उत्पादन का चरण जारी रहा तथा सरकार ने दिनांक 11.05.2012 के निर्यात निर्गम आदेशों की अनिवार्यता को पुन: समाप्त कर दिया है। इसके बाद,
डीजीएफटी के साथ मात्रा के पूर्व रजिस्ट्रेशन के अधीन चीनी के निशुल्क निर्यात की अनुमति प्रदान कर दी गयी थी। बाद में,दिनांक 07.09.2015 से
पूर्व रजिस्ट्रेशन (आर.सी.) की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया था।
इसके अलावा,दिनांक 16.06.2016 से चीनी के निर्यात पर 20% की दर से सीमा शुल्क लगा दिया गया था। तथापि,
चीनी के अधिशेष उत्पादन को देखते हुए भारत सरकार ने दिनांक 20.03.2018 से चीनी के निर्यात पर सीमा शुल्क वापस ले लिया है।
चीनी के अनियंत्रित निर्यात को रोकने और घरेलू खपत के लिए उचित मूल्य पर चीनी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वाणिज्य मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने भी चीनी के संबंध में निर्यात नीति में संशोधन
किया है और इसे प्रतिबंधित श्रेणी के तहत चीनी मौसम 2021-22 के लिए जून,
2022 से कवर किया है। सरकार ने चालू चीनी मौसम के लिए दिनांक 01.11.2022 से दिनांक 31.10.2023 तक उचित सीमा तक चीनी के निर्यात की अनुमति देने का फैसला किया है। निर्यात पर प्रतिबंध के बाद,
चीनी के घरेलू दाम उचित स्तर पर हैं। चीनी मौसम 2022-23 के लिए चीनी मिलों को 60 लाख टन का निर्यात कोटा आवंटित किया गया है।
(ii)
चीनी का आयात
चीनी का आयात जिसे मार्च, 1994 में शून्य शुल्क पर खुले सामान्य लाइसेंस के अधीन रखा गया था और मार्च 1994 में जारी रखने के साथ इसे 27.04.1999 तक शून्य शुल्क के साथ जारी रखा गया था। सरकार ने 28 अप्रैल,1998
से आयात की गई चीनी पर 5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क और 850.00 रुपये प्रति टन की दर से प्रतिशुल्क लगाया। प्रतिशुल्क के अतिरिक्त 14.04.1999 से मूल सीमा शुल्क 5 प्रतिशत से बढ़ा कर 20 प्रतिशत कर दिया गया। वर्ष 1999-2000 के केन्द्रीय बजट में आयात की गई चीनी पर
शुल्क 20 प्रतिशत से और बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया था और इस पर 10 प्रतिशत अधिभार लगा दिया गया था। चीनी के आयात पर सीमा शुल्क दिनांक 30.12.1999 को पुन: बढ़ाकर 40 प्रतिशत और 09.02.2000 को 60 प्रतिशत कर दिया गया और इसके साथ 950 रुपये प्रति टन प्रतिशुल्क
(01.03.2008 से) के साथ 3 प्रतिशत शिक्षा उपकर भी बरकरार रहा।
चीनी मौसम 2008-09
के
दौरान
चीनी
के
उत्पादन में
गिरावट
आई थी और चीनी
के
घरेलू
स्टॉक
को
बढ़ाने
के
लिए केन्द्रीय
सरकार
ने
शून्य
शुल्क पर
खुले सामान्य लाइसेंस के तहत दिनांक 17.04.2009 से कच्ची
चीनी
के
आयात
की
अनुमति
प्रदान
की
थी जो
30.06.2012
तक
जारी रही।
इसके
पश्चात
दिनांक 13.07.2012
से
10 प्रतिशत की सामान्य
दर
से
पुनः शुल्क
लगाया
गया जो बाद में बढ़ाकर 08.07.2013 से 15% कर
दिया गया था।
देश में चीनी का अधिशेष स्टॉक होने के कारण तथा संभावित आयातों पर नियंत्रण रखने के लिए, सरकार ने 21.08.2014 से आयात शुल्क को 15 प्रतिशत
से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया है, जिसे बाद में 30.04.2015 से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया था और बाद में 10.07.2017 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया था। चीनी के अनावश्यक आयात को रोकने और घरेलू मूल्य को वाजिब स्तर पर स्थिर बनाए रखने के लिए
केन्द्रीय सरकार ने किसानों के हित में चीनी के आयात पर सीमा शुल्क दिनांक 06.02.2018 से 50% से बढ़ाकर 100% कर दिया है।
अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से चीनी के वितरण हेतु मौजूदा प्रणाली की समीक्षा
राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा राजसहायता प्राप्त मूल्यों पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के माध्यम से चीनी वितरित की जा रही थी जिसके लिए केंद्र सरकार उन्हें
18.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्रतिपूर्ति कर रही थी। इस स्कीम में जनगणना 2001 के अनुसार देश की गरीबी रेखा से नीचे की सम्पूर्ण आबादी तथा पूर्वोत्तर राज्यों/विशेष श्रेणी/पहाड़ी राज्यों
और द्वीप-समूहों की समस्त आबादी कवर की जा रही थी। अब सभी 36 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,
2013 का व्यापक रूप से कार्यान्वयन किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे
की किसी श्रेणी की पहचान नहीं गयी है; तथापि,
अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों की स्पष्ट रूप से पहचान की जाती है। भारत सरकार ने चीनी राजसहायता स्कीम की समीक्षा की है और समाज के निर्धनतम वर्ग अर्थात् अंत्योदय अन्न योजना के परिवारों के लिए आहार में ऊर्जा के स्रोत के रूप में चीनी
की खपत तक पहुंच देने का निर्णय लिया है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए चीनी वितरण की मौजूदा प्रणाली निम्नानुसार जारी रखी जाए:-
(i)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए चीनी वितरण की मौजूदा प्रणाली अंत्योदय अन्न योजना के परिवारों की सीमित कवरेज के लिए जारी रखा जाए। प्रत्येक अंत्योदय अन्न योजना के परिवार को प्रति महीने एक किलोग्राम चीनी
प्रदान की जाए।
(ii)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अंत्योदय अन्न योजना वाली आबादी के लिए चीनी वितरण करने हेतु केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को 18.50 रूपये प्रति किलोग्राम की दर पर वर्तमान
स्तर की राजसहायता जारी रखी जाए। राज्य/संघ राज्य क्षेत्र परिवहन,
हैंडलिंग और डीलर के कमीशन आदि पर आने वाले अतिरिक्त व्यय को लाभार्थियों के लिए 13.50 रूपये प्रति किलोग्राम के खुदरा निर्गम मूल्य या उससे ऊपर लाभार्थियों पर डाल सकते हैं अथवा स्वयं वहन कर सकते हैं।
वर्तमान में 25 राज्य/संघ राज्य क्षेत्र इस स्कीम में प्रतिभागी हैं।
डा. सी. रंगाराजन समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर चीनी क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करना
वर्ष 2013-14 चीनी क्षेत्र के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष था। केंद्र सरकार ने चीनी क्षेत्र के विनियंत्रण से संबंधित डॉ. सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफ़ारिशों पर विचार किया था और सितम्बर,
2012 के बाद उत्पादित चीनी पर मिलों की लेवी बाध्यता की प्रणाली को समाप्त करने और चीनी की खुले बाजार में बिक्री संबंधी विनियमित निर्गम तंत्र को समाप्त करने का निर्णय लिया था। चीनी क्षेत्र का विनियंत्रण चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने,
नकद प्रवाह में वृद्धि करने, इनवेंटरी लागत को कम करने और गन्ना किसानों को उनके गन्ना मूल्य के यथासमय भुगतान के लिए किया गया था। गन्ना क्षेत्र आरक्षण, न्यूनतम दूरी संबंधी मानदंड और गन्ना मूल्य फार्मूला को अपनाने
के बारे में समिति द्वारा की गई सिफ़ारिशें निर्णय एवं कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है, जैसा वे उचित समझें। समिति की सिफ़ारिशों के सारांश एवं सरकार द्वारा उन पर की गई कार्रवाई का ब्यौरा निम्नानुसार है:-
डा. रंगराजन समिति की सिफारिशों का कार्यान्वयन
मुद्दे
|
सिफारिशों का सार
|
स्थिति
|
गन्ना क्षेत्र का आरक्षण
|
कुछ समय बाद राज्यों को बाजार आधारित दीर्घावधिक संविदात्मक व्यवस्थाओं के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए और गन्ना आरक्षण क्षेत्र तथा बॉंडिंग को समाप्त करना चाहिए। इस बीच वर्तमान प्रणाली जारी रखी जा
सकती है।
|
राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है।
अब तक, किसी राज्य ने कोई कार्रवाई नहीं की है,
अतः मौजूदा व्यवस्था जारी है। महाराष्ट्र में क्षेत्र का कोई आरक्षण नहीं है।
|
न्यूनतम दूरी मानदण्ड
|
यह गन्ना किसानों अथवा चीनी क्षेत्र के विकास के हित में नहीं है तथा राज्य द्वारा गन्ना आरक्षण क्षेत्र एवं बांडिंग को समाप्त किए जाने के साथ-साथ इसे भी रद्द कर दिया जाए।
|
राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है।
अब तक,
किसी राज्य ने कोई कार्रवाई नहीं की है, अतः मौजूदा व्यवस्था जारी है।
|
गन्ना मूल्य राजस्व साझेदारी
|
उप उत्पादों (शीरा तथा खोई/सह-उत्पादन) के लिए उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर राजस्व साझेदारी अनुपात चीनी मिल द्वार मूल्य का लगभग 75 प्रतिशत आंकलित किया गया है।
|
राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है।
अब तक केवल कर्नाटक और महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए राज्य अधिनियम पारित किया है।
|
लेवी चीनी
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लेवी चीनी को समाप्त किया जाए। जो राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत चीनी उपलब्ध कराना चाहते हैं वे अब से अपनी आवश्यकतानुसार चीनी सीधे बाजार से खरीदें और निर्गम मूल्य भी स्वयं तय करें। तथापि,
चूंकि वर्तमान में लेवी के कारण एक अंतर्निहित क्रास-सब्सिडी है, इस संबंध में व्यय की गई लागत को पूरा करने के लिए अल्पावधि हेतु राज्यों को कुछ हद तक केंद्रीय सहायता दी जा सकती है।
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केंद्रीय सरकार ने 1 अक्टूबर 2012 के पश्चात उत्पादित चीनी से लेवी समाप्त कर दी है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रचालनों के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा खरीद खुले बाजार से खरीद की जा रही है और
सरकार अंत्योदय अन्न योजना के परिवारों की सीमित कवरेज हेतु चीनी उपलब्ध कराने के लिए 18.50 रूपये प्रति कि.ग्रा. की निश्चित सब्सिडी दे रही है जिन्हें प्रति परिवार, प्रति माह 1 कि.ग्रा.
चीनी उपलब्ध कराई जाएगी।
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विनियमित रिलीज व्यवस्था
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यह व्यवस्था किसी भी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर रही है, तथा इसे समाप्त किया जा सकता है।
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रिलीज तंत्र समाप्त कर दिया गया है।
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व्यापार नीति
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समिति के अनुसार, चीनी संबंधी व्यापार नीतियां स्थिर होनी चाहिए। उचित टैरिफ साधनों जैसे एक मध्यम निर्यात शुल्क,
जो सामान्यत: मात्रात्मक प्रतिबंधों के विपरीत 5 फीसदी से अधिक नहीं हो, का प्रयोग चीनी की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से कुशल पद्धति से किया जाना चाहिए।
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चीनी का आयात और निर्यात किसी मात्रात्मक प्रतिबंध के बिना मुक्त है परंतु यह सीमा शुल्क की विद्यमान दर के अधीन है। आयात शुल्क को 29.04.2015 से 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत तथा 10.07.2017 से 50 प्रतिशत
कर दिया गया है, जिसे अब 06.02.2018 से और बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया है।
चीनी के उत्पादन, स्टॉक स्थिति तथा बाजार मूल्य
रुझानों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने दिनांक 20.03.2018 की अधिसूचना सं. 30/2018 के तहत चीनी के निर्यात पर सीमा शुल्क वापस ले लिया है।
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सह-उत्पाद
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शीरा और एथेनॉल जैसे सह-उत्पादों पर कोई मात्रात्मक या संचलनात्मक प्रतिबंध नहीं
होने चाहिए। उप-उत्पादों की कीमतें बाजार द्वारा तय हों जिसमें कोई निर्धारित अंतिम-उपयोग आवंटन न हो। चीनी मिलों द्वारा किसी भी उपभोक्ता को अपने अधिशेष बेचने से रोकने वाली कोई विनियामक बाधा न हो।
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औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग ने वर्ष 2016 की अधिसूचना सं. 27 दिनांक 14.05.2016 द्वारा आई (डी एंड आर) अधिनियम,
1951 में अब संशोधन कर दिया है। इस संशोधन से राज्य केवल मानवीय उपभोग के लिए शराब पर कानून बना सकते हैं, नियंत्रण कर सकते है और/अथवा कर एवं शुल्क लगा सकते हैं। इसे छोडकर अर्थात डि-नेचर्ड इथेनोल, जो मानवीय उपभोग के
लिए नहीं होता है, पर नियंत्रण केवल केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा।
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